shlovij – 12 – bhakti yog (भक्ति योग) كلمات اغاني
hook:_
अर्जुन के मन में है सवाल
बोले, कृष्ण मुझे दे दो जवाब
रूप सगुण निर्गुण दोनों आपके
किसे पूजें, जिससे प्राप्त हों आप।
अर्जुन के मन में हैं सवाल
बोले कृष्ण, सुनो ध्यान से पार्थ
रूप सगुण निर्गुण दोनों मेरे ही
दोनों रूप में ही होता मैं प्राप्त।।
verse १
बोले श्री कृष्ण तथ्य सुनना अर्जुन ध्यान से
प्रिय मुझे वो, जो सगुण रूप मेरा जानते
मेरे निर्गुण रूप को भी सच्ची भक्ति से जो भजते
मुझको ही प्राप्त हो जाते वो अर्जुन ज्ञान से।
आगे बोले श्री कृष्ण रूप मेरा जो निर्गुण पूजे
त्यागना पड़ता देह अभिमान अर्जुन उसको
क्योंकि वो रूप निराकार जिसकी ना कोई सीमा
त्यागे जो मोह, देह का, मैं मिलता अर्जुन उसको।
लेकिन जो लोग सगुण रूप मेरा पूजते हैं
लगाते ध्यान मुझमें और सच्चे मन से भजते
उन प्रेमी भक्तों का मैं करता हूं उद्धार अर्जुन
जो सच्चे मन व बुद्धि से बस सच्चे कर्म हैं करते।
अर्जुन को सलाह दें माधव मन व बुद्धि लगा कृष्ण में
इसके विपरित यदि अर्जुन तू इसमें समर्थ नहीं है
तो कर अभ्यास रूप तू योग द्वारा मेरी प्राप्ति इच्छा
करना अभ्यास लाता मेरे पास, ये अर्जुन व्यर्थ नहीं है।।
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अर्जुन के मन में है सवाल
बोले, कृष्ण मुझे दे दो जवाब
रूप सगुण निर्गुण दोनों आपके
किसे पूजें, जिससे प्राप्त हों आप।
अर्जुन के मन में हैं सवाल
बोले कृष्ण, सुनो ध्यान से पार्थ
रूप सगुण निर्गुण दोनों मेरे ही
दोनों रूप में ही होता मैं प्राप्त।।
verse २
आगे बोले माधव, गर जो मन बुद्धि ना लगे मुझमें
तो एक उपाय और, अर्जुन कर्मों के फल का त्याग
है मुझे प्रिय ऐसा भक्त जिसमें स्वार्थ ना हो
दृढ़ निश्चय वाला, जिसमें हो ना कोई द्वेष भाव।
जो किसी दूसरे की उन्नति से जलता नहीं
सुख दुःख जीवन मृत्यु व भय अभय से भिन्न है जो
जरूरत से ज्यादा ना खुश हो, करता शोक ना हो
पसंद है मुझको ऐसा भक्त सबसे छिन्न है जो।
ना करता कामना, हर जगह पर सशक्त है जो
सुख हो या दुःख दोनों में समरूपी विभक्त है जो
निंदा,स्तुति, छप्पन भोग, या फिर सादा भोजन
सबमें संतुष्ट, मुझे प्रिय ऐसा भक्त है जो।
हे अर्जुन, श्रद्धा से जो युक्त मुझे प्रिय है वो
किंचित श्रद्धा उसकी कर्तव्य कर्म में होनी चाहिए
भजते हो ईश्वर को तो पूरी निष्ठा श्रद्धा रखो
क्योंकि जहां श्रद्धा होती वहाँ शंका नहीं होनी चाहिए।।
hook:_
अर्जुन के मन में है सवाल
बोले, कृष्ण मुझे दे दो जवाब
रूप सगुण निर्गुण दोनों आपके
किसे पूजें, जिससे प्राप्त हों आप।
अर्जुन के मन में हैं सवाल
बोले कृष्ण, सुनो ध्यान से पार्थ
रूप सगुण निर्गुण दोनों मेरे ही
दोनों रूप में ही होता मैं प्राप्त।।
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